रतन टाटा जी का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था, पारसी फैमिली में जन्मे रतन टाटा जी का जीवन लोगों के प्रेरणादायक रहा है और ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं। उन्होंने अपनी ही कंपनी में कर्मचारी बनकर काम किया, तो दूसरी ओर अपने कारोबार से होने वाली आमदनी का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा दान करके देश के सबसे बड़े दानवीरों में शुमार रहे। यही नहीं उन्होंने अपनी काबिलियत की दम पर जिस बिजनेस को छुआ उसे सोना बना दिया और कई लोगों की किस्मत भी बदली।
अमेरिका से ली आर्किटेक्चर की डिग्री शुरुआती शिक्षा के बाद रतन टाटा जी हायर एजुकेशन के लिए अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी गए और वहां से बी.आर्क की डिग्री प्राप्त की थी। पढ़ाई पूरी कर भारत लौटने से पहले उन्होंने करीब 2 साल तक लॉस एंजिल्स में जोन्स और इमन्स के साथ कुछ समय के लिए नौकरी भी की थी। साल 1962 के अंत में दादी नवाजबाई टाटा की तबीयत खराब होने चलते वह नौकरी छोड़कर भारत वापस लौट आए थे।
विदेश में प्यार, लेकिन नहीं हो सकी शादी
रतन टाटा ने कभी शादी नहीं की, लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्हें कभी किसी से प्यार नहीं हुआ. एक इंटरव्यू के दौरान खुद रतन टाटा ने अपनी लव लाइफ के बारे में विस्तार से बताया था. उन्होंने कहा था कि उनकी जिंदगी में प्यार ने एक नहीं बल्कि चार बार दस्तक दी थी, लेकिन मुश्किल दौर के आगे उनके रिश्ते शादी के मुकाम तक पहुंच नहीं सके. दादी की तबीयत खराब होने के चलते वे अमेरिका से भारत आ गए थे, लेकिन उनकी प्रेमिका भारत नहीं आना चाहती थीं. उसी वक्त भारत-चीन का युद्ध भी छिड़ा हुआ था. आखिर में उनकी प्रेमिका ने अमेरिका में ही किसी और से शादी कर ली। उन्होंने अपनी शिक्षा हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से पूरी की और 1962 में टाटा समूह में शामिल हुए और फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान टाटा ग्रुप पर लगाया। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई। उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता ने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
टाटा स्टील से ऐसे की शुरुआत
अमेरिका से भारत लौटने के बाद अपने पारिवारिक बिजनेस ग्रुप Tata के साथ करियर शुरू किया। लेकिन आपको बता दें कि जिस कंपनी ने Tata Family के सदस्य मालिक की पोजीशन पर थे, उस कंपनी में रतन टाटा ने एक सामान्य कर्मचारी के तौर पर काम शुरू किया। इस दौरान उन्होंने टाटा स्टील के प्लांट में चूना पत्थर को भट्ठियों में डालने जैसे काम भी किए और बिजनेस की बारीकियों को सीखीं थी।
Tata Steel में काम करने के बाद साल 1991 में उन्होंने टाटा ग्रुप की कमान थामी और फिर शुरू हो गया टाटा की कंपनियों के बुलंदियों पर पहुंचने का सिलसिला. उन्होंने कारोबार विस्तार पर फोकस करना शुरू कर दिया।
कारोबार के विस्तार पर किया फोकस
टाटा समूह की बागडोर संभालने के बाद, उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा किया। इनमें टाटा नैनो, टाटा मोटर्स का अधिग्रहण, और टाटा स्टील का कोरस समूह का अधिग्रहण शामिल हैं। उन्होंने वैश्विक विस्तार किया और टाटा टी (Tata Tea), टाटा मोटर्स (Tata Motors), टाटा स्टील (Tata Steel) जैसी कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया। इन परियोजनाओं ने न केवल टाटा समूह को बल्कि भारतीय उद्योग जगत को भी नई दिशा दी। रतन टाटा जी की उद्यमशीलता और समाज सेवा के प्रति समर्पण ने अनगिनत लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। आज इन कंपनियों का कोराबार बहुत बड़ा हो चुका है और ये कंपनियां लाखों लोगों को रोजगार मुहैया करा रही हैं।
जब Tata Group में जेआरडी का उत्तराधिकारी चुनने की बारी आई, तो उस समय रतन टाटा सबसे योग्य व्यक्ति थे, जो उनकी जगह ले सकते थे और समूह की कमान संभालने के बाद उन्होंने इसे साबित भी किया।
हर बड़े फैसले में JRD की राय
JRD Tata के कदम से कदम मिलाकर चलते हुए उन्होंने टाटा ग्रुप के कारोबार के विस्तार से जुड़े कई अहम फैसले लिए। हालांकि, कमान हाथ में लेने के बाद भी वो जेआरडी टाटा से हर बड़े कदम पर राय मशविरा जरूर करते थे। साल 1993 की ये तस्वीर कुछ यही बयां कर रही है।
ऑटो दिग्गज फोर्ड को झुकाया
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप का कारोबार (Tata Group Business) तेजी से आगे बढ़ा और देश ही नहीं दुनियाभर में TATA का डंका बजा। अपने मेहनत और काबिलियत की दम पर विशान साम्राज्य खड़ा करने वाले रतन टाटा को भारत सरकार की ओर से बड़े सम्मान मिले। साल 2000 में जहां रतन टाटा को पद्म भूषण दिया गया, तो साल 2008 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
देश को दी लखटकिया कार
रतन टाटा ने एक ऐसा सपना देखा था, जिसे पूरा करना शायद हर किसी के बस में नहीं होता, लेकिन Ratan Tata ने ये कर दिखाया। हम बात कर रहे हैं देश की पहली लखटकिया कार Tata Nano के बारे में, भारत के आम आदमी को एक लाख में कार खरीदने का मौका रतन टाटा ने ही दिया था। उन्होंने बाजार में 2008 में टाटा नैनो उतारी, हालांकि यह कार उनकी उम्मीदों के अनुसार बाजार में धमाल नहीं दिखा पाई।
रतन टाटा थे बड़े डॉग लवर
दिवंगत रतन टाटा जी को बड़ा बिजनेसमैन, दरियादिल इंसान के साथ ही 'डॉग लवर' के तौर पर जाना जाता था। आवारा जानवरों के प्रति उनका प्यार देखते ही बनता है। सोशल मीडिया (Social Media) पर भी अरबपति उद्योगपति कुत्तों के साथ अपनी तस्वीरें और उनकी सुरक्षा के लिए अपील भरी पोस्ट शेयर करते रहते थे। रतन टाटा जी के ड्रीम प्रोजेक्ट 98,000 वर्ग फीट में फैला और 5 मंजिला पशु अस्पताल साउथ मुंबई के महालक्ष्मी क्षेत्र इसी साल शुरू हुआ।
कारों के बेहद शौकीन थे रतन टाटा जी
रतन टाटा का सिर्फ अपनी ऑटोमोबाइल कंपनी Tata Motors पर ही विशेष फोकस नहीं था, बल्कि वे लग्जरी कारों की सवारी करने के भी शौकीन थे। उनके कार कलेक्शन में एक से बढ़कर एक कारें शामिल थीं।
रतन टाटा को विमान उड़ाने का था शौक
रतन टाटा बेहद सादगीपूर्ण जीवन जीते थे, लेकिन उनके कई बड़े शौक भी थे। इनमें पिआनो बजाना, लग्गजरी कारों और विमान उड़ाने का शौक शामिल था। वह 2007 में F-16 फाल्कन उड़ाने वाले पहले भारतीय बने।
दानवीर, दरियादिल और पशु प्रेमी के तौर पर भारतीय कारोबारी इतिहास में अलग पहचान बनाने वाले और भारत के 'रतन' रतन टाटा जी ने 9 अक्टूबर 2024 को दुनिया को अलविदा कह दिया। रतन टाटा जी ऐसे बिजनेसमैन थे, जो अपने कारोबार से होने वाली आमदनी का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा टाटा ट्रस्ट के जरिए दान करते थे। छोटे-बड़े कारोबारियों से लेकर युवाओं तक के लिए आदर्श बन चुके 86 साल की उम्र में उनका मुंबई के ब्रीच कैंड अस्पताल में निधन हुआ। उनके निधन दे पूरे देश में शोक है।
रतन टाटा जी की सरलता और विनम्रता हमें सिखाती है कि सच्ची महानता सेवा और समर्पण में निहित है। उन्होंने हमेशा अपने कर्मचारियों और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दी। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने कई सामाजिक और पर्यावरणीय परियोजनाओं को भी समर्थन दिया। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पहल शामिल हैं।
उनकी यादें और उनके द्वारा स्थापित मानदंड हमें हमेशा सही दिशा में मार्गदर्शन करते रहेंगे। रतन टाटा जी के निधन से देश ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया है, जिसकी भरपाई करना असंभव है। उनके निधन से न केवल उद्योग जगत में बल्कि पूरे समाज में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है।
रतन टाटा जी का जीवन और उनके विचार सदैव हमारे दिलों में जीवित रहेंगे। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उन्होंने अपने जीवन में जो मानदंड स्थापित किए, वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे। उनकी उद्यमशीलता, समाज सेवा, और विनम्रता के प्रति समर्पण ने उन्हें एक अद्वितीय व्यक्तित्व बनाया।
उनके निधन पर देश के विभिन्न हिस्सों से शोक संदेश आ रहे हैं। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, और अन्य प्रमुख नेताओं से लेकर मुकेश अंबानी तक ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि रतन टाटा जी का योगदान और उनकी दूरदर्शी सोच हमेशा हमें प्रेरणा देती रहेगी। उनके निधन से देश ने एक महान उद्योगपति और विनम्र व्यक्तित्व को खो दिया है।
रतन टाटा जी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए, टाटा समूह के वर्तमान अध्यक्ष ने कहा, "रतन टाटा जी का निधन हमारे लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने अपने नेतृत्व में टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता ने हमें हमेशा प्रेरित किया है। हम उनके योगदान को कभी नहीं भूल सकते।"
रतन टाटा जी के निधन से देश ने एक महान उद्योगपति और विनम्र व्यक्तित्व को खो दिया है। उनका योगदान और दूरदर्शी सोच हमेशा हमें प्रेरणा देती रहेगी। उनका जीवन और उनके विचार सदैव हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।
||सत् साहेब ||
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